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नहीं लगता उनका यह उपकार मानव जाति कभी चुका पाएगा।

इन दिनों बॉलीवुड में "बोल्ड" दिखने का गजब का ट्रेंड चला हुआ है। नाती पोतों वालों से लेकर कभी न चल सकने वाली तारिकाएं सबको 'हॉट' दिखते हुए इंडस्ट्री में cool का तमगा लगाकर घूमना है। बेबी बंप वाले ओल्ड फैशन से अलग और नया यह बोल्डनेस वाले अंदाज के लिए पत्रकारिता का एक समूह भी आजीवन समर्पित है, उसका काम ही है इन तारिकाओं के सुबह जिम जाने से लेकर आधी रात पार्टी करने के सभी बोल्ड गेट अप को दिखाकर अपने दर्शकों को धन्य कर देना। राहुल गांधी को टी शर्ट में देखकर तपस्वी घोषित करने वाले पत्रकारों को "बोल्डनेस" कवर करने वाले इन पत्रकारों से सीखना चाहिए। शरीर में मोबाइल लटका कर अपने निर्वस्त्र होने की संज्ञा से बचते हुए इन तारिकाओं ने जिस प्रकार से अपने फैशन के ज्ञान से लोगों को धन्य किया है, मुझे नहीं लगता उनका यह उपकार मानव जाति कभी चुका पाएगा। हां कुछेक नारीवादी और अति आधुनिक बुद्धिजीवी अंतः वस्त्रों के रंग पर भी कला और स्त्री की स्वच्छंदता पर ज्ञान बखार चुके हैं, उस समीकरण से तो आजम खान के रंग बिरंगी अंतः वस्त्र की परिभाषा पर टिपण्णी करना कथाचित उचित नहीं है।